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अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाद पूरी आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं !

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> अशोक भाटिया

दिल्ली के कथित शराब घोटाले में अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाद पूरी आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दिल्ली मुख्यमंत्री  अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें थम नहीं रही हैं। एक तरफ जहां शीर्ष नेतृत्व सलाखों के पीछे है तो वहीं अब उनके साथी भी हाथ छुड़ाने लगे हैं। सामने आया है कि, पटेल नगर से विधायक राजकुमार आनंद ने मंत्री पद से  इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने पार्टी से भी इस्तीफा देते हुए पार्टी पर भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठाए हैं। राजकुमार आनंद ने कहा कि, भ्रष्टाचार को लेकर पार्टी की जो नीति है, उससे वह सहमत नहीं है।

इसके अलावा   मंगलवार को मुख्यमंत्री  केजरीवाल की जमानत याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि राजनीतिक पार्टियां भी मनी लॉन्ड्रिंग कानून की धारा 70 के दायरे में आती है। इससे अब कथित शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाया जा सकता है।अदालत ने कहा कि कथित शराब घोटाले मामले में प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 70 भी लागू होती है। धारा 70 किसी कंपनी की ओर से किए गए अपराधों के लिए सजा का प्रावधान करती है। इतना ही नहीं, कोर्ट के आदेश से ये भी साफ होता है कि राजनीतिक पार्टियां धारा 70 के अंतर्गत आती हैं। माना जा रहा है कि अब ईडी इस मामले में आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बना सकती है।इससे पहले पिछले हफ्ते ईडी ने हाईकोर्ट में कहा था कि आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की है, जो पीएमएलए की धारा 70 के तहत अपराध के दायरे में आता है।

हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद माना जा रहा है कि बाकी राजनीतिक पार्टियों की टेंशन भी बढ़ सकती है। वो इसलिए क्योंकि कई विपक्षी नेता ईडी की रडार पर हैं और उन पर मनी लॉन्ड्रिंग की जांच चल रही है। इस कारण अब ईडी को अगर लगता है तो पीएमएलए की धारा 70 के तहत किसी भी राजनीतिक पार्टी को आरोपी बना सकती है।पीएमएलए की धारा 70 कंपनियों की ओर से की जाने वाली मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के लिए लगाई जाती है। इसमें कहा गया है कि जब कोई कंपनी मनी लॉन्ड्रिंग करती है, तो हर एक व्यक्ति जो अपराध के समय उस कंपनी का प्रभारी या जिम्मेदार था, उसे भी दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि किसी व्यक्ति पर मुकदमा तब नहीं चलाया जाएगा, जब वो ये साबित कर सके कि मनी लॉन्ड्रिंग उसकी जानकारी के बगैर हुई थी या उसने इसे रोकने की भरसक कोशिश की थी।इस धारा में एक अपवाद भी जोड़ा गया है। इसके मुताबिक, कंपनी एक अलग लीगल एंटीटी भी है, लिहाजा उसके कर्मचारियों या उसे चलाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ स्वतंत्र रूप से भी मुकदमा चलाया जा सकता है।दरअसल, ईडी ने आम आदमी पार्टी को ‘कंपनी’ माना है। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने बताया था कि सबूतों से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी ने रिश्वत के पैसों का इस्तेमाल गोवा में चुनाव प्रचार के लिए किया था।उन्होंने कहा था कि इस मामले में आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ और उसने अपराध किया। इस मामले में आम आदमी पार्टी ‘व्यक्तियों का समूह’ है। और पीएमएलए की धारा 70 दायरे में सिर्फ ‘रजिस्टर्ड कंपनियां’ ही नहीं बल्कि ‘व्यक्तियों का समूह’ भी आता है। एएसजी राजू ने दलील दी थी कि हो सकता है कि आप पूरी तरह से एक कंपनी न हों, लेकिन आप ‘व्यक्तियों का संघ’ हैं, इसलिए आम आदमी पार्टी एक कंपनी हुई।

हाईकोर्ट में मुख्यमंत्री  केजरीवाल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि इस मामले में धारा 70 का गलत तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश की गई है।सिंघवी ने कहा था कि इस मामले में धारा 70 लागू नहीं हो सकती। आम आदमी पार्टी जनप्रितिनिधि कानून के तहत रजिस्टर्ड है। ऐसी स्थिति में एक अलग कानून जो राजनीतिक पार्टी को अलग तरह से मान्यता देता है, उसे पी एम एल ए  में शामिल नहीं किया जा सकता।वहीं, इस पर ईडी के वकील एसवी राजू ने कहा था कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 2(f) के अनुसार, एक राजनीतिक पार्टी ‘व्यक्तियों का समूह’ है। इसलिए आम आदमी पार्टी को पी एम एल ए   की धारा 70 के तहत एक कंपनी माना जाएगा।

ईडी ने दावा किया है कि दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जो आपराधिक आय कमाई गई, उसका फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ। आम आदमी पार्टी के गठन के पीछे न सिर्फ अरविंद केजरीवाल क दिमाग था, बल्कि पार्टी की सभी बड़ी गतिविधियों पर भी उनका नियंत्रण था।ईडी ने कोर्ट में बताया कि गवाहों के बयान के आधार पर पता चलता है कि केजरीवाल न सिर्फ इस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं, बल्कि सभी नीतिगत निर्णयों में भी शामिल रहे हैं।जांच एजेंसी का कहना है कि आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध किया है, जो धारा 70 के अंतर्गत आता है।

भले ही दिल्ली शराब नीति केस कारण बना हो। भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद का हाई कोर्ट में गिरफ्तारी को चैलेंज करना उलटा पड़ा हो। भले ही आम आदमी पार्टी पी एम एल ए   की धारा 70 के तहत जांच के दायरे में आने वाली पहली पार्टी हो – लेकिन ये मामला देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए जोर जोर से खतरे की घंटी बजा रहा है, खासतौर से क्षेत्रीय दलों के लिए।करीब छह महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में पहली बार ये मामला उठा था। अक्टूबर, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय से सवाल किया था कि दिल्ली शराब नीति केस में अगर आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ है, तो उसे आरोपी क्यों नहीं बनाया गया?

और उसके बाद से ही प्रवर्तन निदेशालय इसके कानूनी पहलुओं पर विचार करने लगा था। जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी और रिमांड को चैलेंज किया तो सुनवाई के दौरान केस को मजबूत करने के लिए ईडी ने दावा किया कि शराब घोटाले से आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ है। इस तरह आम आदमी पार्टी ने अपराध किया है – और दिल्ली हाई कोर्ट ने ईडी की ये बात मान भी ली।ऐसा होते ही अब आम आदमी पार्टी को भी दिल्ली शराब नीति केस में आरोपी बनाने का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट के फैसले से ये साफ हो गया है कि दिल्ली शराब घोटाला केस में पूरी आम आदमी पार्टी ही जांच के दायरे में आ सकती है – दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में माना है कि राजनीतिक दल होते हुए भी आम आदमी पार्टी एक कंपनी जैसी ही है।अब बात जब हाई कोर्ट से ‘निकली है तो दूर तलक जाएगी’ – मतलब, अगर कोई भी राजनीतिक दल ऐसे कथित घोटाले या भ्रष्टाचार की जांच के दायरे में आ सकता है। जाहिर है, उसके जिम्मेदार पदाधिकारी भी जांच के दायरे होंगे – और क्षेत्रीय दलों के लिए तो और भी मुश्किल खड़ी हो सकती है।

अगर तकनीकी परिभाषा के चक्कर में न पड़ें तो कंपनियां कारोबार के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन राजनीतिक दलों का मकसद अलग होता है। एनजीओ जिन्हें गैर-सरकारी संगठन भी कहते हैं, उनका मकसद तो सेवा ही है, राजनीतिक दलों के नेता भी अपना पेशा समाजसेवा ही बताते रहे हैं – लेकिन अब तो लगता है, राजनीतिक दलों को भी कंपनी की तरह ही देखा जाने लगेगा। मानो वे ‘प्रॉफिट मेकिंग’ के लिए बनाए गए हों।दिल्ली शराब नीति केस में हाई कोर्ट के ताजा फैसले को ध्यान से देखें तो कुछ बातें साफ हो जाती हैं – और सबसे खास बात है कि राजनीतिक दल और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बहुत फर्क नहीं रह गया है।

दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को आम आदमी पार्टी से आगे बढ़ कर देखें तो सभी राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। अब तो ऐसा लगता है कि कंपनियां भले ही इलेक्टोरल बॉन्ड लेने के योग्य न हों, लेकिन आगे चल कर राजनीतिक दलों के लिए भी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी तय की जा सकती है।

मतलब, ये भी है कि अभी तक इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो बवाल हो रहा है, आगे चल कर उसका भी हिसाब किताब देना पड़ सकता है – और अगर उसमें पाया गया कि वो किसी पार्टी को रिश्वत के रूप में मिला है, तो इस बात की भी जांच हो सकती है कि कहीं चुनावों में उसका दुरुपयोग तो नहीं हुआ है – जैसे आम आदमी पार्टी के केस में गोवा चुनाव में मनी ट्रेल की बात की जा रही है।अगर लालू यादव को चारा घोटाले में मिली सजा को मिसाल के तौर पर लें, तो सजा वो अकेले भुगत रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल पर कोई असर नहीं हुआ है। सजा होने के बाद भी वो आरजेडी के अध्यक्ष बने रहे हैं – और भ्रष्टाचार को लेकर न तो आरजेडी पर कोई असर पड़ा है, न ही तेजस्वी यादव या परिवार के बाकी नेताओं पर – लेकिन क्या आगे भी ऐसा ही होगा?अब तो लगता है, आरजेडी की तरह कांग्रेस जैसी पार्टी के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं जो पहले से ही एजीएल  से जुडे़ मामलों को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रही है।

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